भारत की अर्थव्यवस्था ने वित्तीय वर्ष 2024-25 में अभूतपूर्व प्रगति दर्ज की है। 6.5 प्रतिशत की मजबूत और स्थिर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि के साथ भारत ने दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का गौरव हासिल किया है। वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं, जैसे कि व्यापार तनाव, ऊर्जा संकट और राजनीतिक अस्थिरता के बीच भी भारत ने अपनी आर्थिक मजबूती और विकास की गति को बरकरार रखा है। यह उपलब्धि न केवल भारत के आर्थिक परिदृश्य को
बदल रही है, बल्कि वैश्विक आर्थिक मानचित्र पर भी देश की स्थिति को मजबूत कर रही है।
भारत की आर्थिक वृद्धि का मुख्य आधार मजबूत घरेलू मांग, बढ़ता निजी और सार्वजनिक निवेश, तथा निर्यात में लगातार वृद्धि है। ग्रामीण क्षेत्रों में खपत में तेजी आई है, जिससे कृषि आधारित अर्थव्यवस्था को मजबूती मिली है। शहरी क्षेत्रों में भी उपभोग और सेवाओं की मांग बढ़ी है, जो आर्थिक गतिविधियों को गति प्रदान कर रही है। इसके अलावा, सरकार द्वारा इंफ्रास्ट्रक्चर और बुनियादी ढांचे में किए गए बड़े निवेश ने रोजगार सृजन और उत्पादन क्षमता को बढ़ावा दिया है।
निजी क्षेत्र में भी निवेश के अवसर बढ़े हैं, जिससे उद्योगों का विस्तार हुआ है और नई तकनीकों को अपनाने की प्रक्रिया तेज हुई है। इसके साथ ही, वित्तीय संस्थानों द्वारा किफायती ऋण उपलब्ध कराने से व्यवसायों और उपभोक्ताओं को आर्थिक फैसले लेने में मदद मिली है, जिससे आर्थिक गतिविधियों में स्थिरता आई है।
मुद्रास्फीति पर प्रभावी नियंत्रण
मुद्रास्फीति को नियंत्रित रखना आर्थिक स्थिरता के लिए बेहद महत्वपूर्ण होता है। मई 2025 में भारत की उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) मुद्रास्फीति 2.82 प्रतिशत पर आ गई, जो फरवरी 2019 के बाद का सबसे कम स्तर है। खाद्य मुद्रास्फीति भी 0.99 प्रतिशत तक गिर गई है, जिससे आम जनता की रोजमर्रा की जिंदगी में राहत मिली है। खासकर सब्जियां, अनाज और अन्य आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में गिरावट ने घरेलू खर्च को संतुलित रखा है।
भारतीय रिजर्व बैंक ने अपनी वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट में यह भी बताया है कि आने वाले महीनों में मुद्रास्फीति नियंत्रण में बनी रहेगी। वैश्विक कच्चे तेल और अन्य वस्तुओं की कीमतों में स्थिरता के चलते आयातित मुद्रास्फीति का खतरा कम है। हालांकि, मध्य पूर्व में हाल के तनावों को देखते हुए कुछ अनिश्चितताएं बनी हुई हैं, लेकिन भारत की मौद्रिक नीतियां इन चुनौतियों से निपटने के लिए सक्षम हैं।
निर्यात में अभूतपूर्व वृद्धि
भारत का निर्यात प्रदर्शन भी आर्थिक विकास की एक बड़ी कहानी कहता है। 2024-25 में कुल निर्यात 824.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया, जो पिछले वर्ष की तुलना में 6.01 प्रतिशत अधिक है। इसमें सेवाओं का निर्यात 13.6 प्रतिशत बढ़कर 387.5 बिलियन डॉलर हो गया है, जो भारत की वैश्विक सेवा प्रतिस्पर्धा को दर्शाता है। खासकर आईटी, कंसल्टिंग, वित्तीय सेवाओं और डिजिटल प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में भारत ने अपनी पकड़ मजबूत की है।
मर्चेंडाइज निर्यात, पेट्रोलियम उत्पादों को छोड़कर, भी रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है। मशीनरी, रसायन, इलेक्ट्रॉनिक्स और रक्षा उपकरण जैसे उच्च मूल्य वाले उत्पादों की मांग वैश्विक बाजारों में तेजी से बढ़ रही है। विनिर्माण क्षेत्र में भी उत्पादन लगभग दोगुना हो गया है, जिससे निर्यात की निरंतर वृद्धि को बल मिला है।
विदेशी निवेश और विदेशी मुद्रा भंडार में मजबूती
भारत विदेशी निवेशकों के लिए एक आकर्षक गंतव्य बना हुआ है। वित्त वर्ष 2024-25 में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) 81.04 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया, जो पिछले वर्ष की तुलना में 14 प्रतिशत अधिक है। सेवा क्षेत्र, कंप्यूटर सॉफ्टवेयर, हार्डवेयर और विनिर्माण क्षेत्रों में निवेश में खासा इजाफा हुआ है। यह निवेश भारत की आर्थिक नीतियों और विकास की संभावनाओं में वैश्विक विश्वास को दर्शाता है।
विदेशी मुद्रा भंडार भी मजबूत बना हुआ है। जून 2025 तक भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 697.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जो 11 महीने से अधिक के माल आयात को पूरा करने के लिए पर्याप्त है। यह भंडार भारत को वैश्विक आर्थिक झटकों के समय सुरक्षा कवच प्रदान करता है और आर्थिक स्थिरता बनाए रखने में मदद करता है।
पूंजी बाजारों में बढ़ता निवेशक विश्वास
भारत के पूंजी बाजारों ने भी शानदार प्रदर्शन किया है। घरेलू बचत को निवेश में बदलने की प्रक्रिया ने आर्थिक विकास को गति दी है। खुदरा निवेशकों की संख्या 2019 में 4.9 करोड़ से बढ़कर 2024 के अंत तक 13.2 करोड़ हो गई है, जो आम जनता के शेयर बाजार में बढ़ते विश्वास को दर्शाता है।
प्राथमिक बाजार में भी आईपीओ की संख्या और राशि में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। अप्रैल से दिसंबर 2024 के बीच 259 आईपीओ आए, जो पिछले वर्ष की तुलना में 32.1 प्रतिशत अधिक हैं। इन आईपीओ के माध्यम से जुटाई गई राशि ₹1,53,987 करोड़ तक पहुंच गई, जो पिछले वर्ष से लगभग तीन गुना अधिक है। वैश्विक स्तर पर भी भारत की आईपीओ सूची में हिस्सेदारी बढ़कर 30 प्रतिशत हो गई है, जो दुनिया में सबसे अधिक है।
चालू खाता और विदेशी व्यापार संतुलन
भारत का चालू खाता संतुलन भी मजबूत हुआ है। 2024-25 की चौथी तिमाही में चालू खाता में 13.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर का सरप्लस दर्ज किया गया, जो पिछले वर्ष की तुलना में काफी सुधार है। पूरे वित्त वर्ष में चालू खाता घाटा जीडीपी के केवल 0.6 प्रतिशत पर सीमित रहा, जो आर्थिक स्थिरता का संकेत है।
यह सुधार मुख्य रूप से सेवा निर्यात में वृद्धि और विदेशों में रहने वाले भारतीयों से लगातार आने वाले धन प्रवाह के कारण संभव हुआ है। इससे भारत की विदेशी मुद्रा स्थिति मजबूत हुई है और वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं से निपटने की क्षमता बढ़ी है।
भारत की आर्थिक प्रगति न केवल विकास की गति को दर्शाती है, बल्कि आर्थिक स्थिरता, निवेशकों के विश्वास और वैश्विक प्रतिस्पर्धा में देश की मजबूती को भी उजागर करती है। 6.5 प्रतिशत की जीडीपी वृद्धि, मुद्रास्फीति पर नियंत्रण, रिकॉर्ड निर्यात, मजबूत विदेशी निवेश और पूंजी बाजारों में बढ़ती भागीदारी ने भारत को वैश्विक आर्थिक मंच पर एक मजबूत खिलाड़ी बना दिया है।
आने वाले वर्षों में यह रफ्तार जारी रहने की उम्मीद है, जिससे भारत न केवल आर्थिक रूप से सशक्त होगा, बल्कि एक समावेशी और स्थायी विकास की दिशा में भी अग्रसर रहेगा। वैश्विक चुनौतियों के बीच भारत की यह उपलब्धि देश के उज्जवल भविष्य की ओर एक बड़ा कदम है।
आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा का कहना है कि इस वैश्विक परिवेश में, भारतीय अर्थव्यवस्था वैश्विक प्रगति का एक प्रमुख चालक बनी हुई है। मजबूत घरेलू विकास कारकों, बेहतर मैक्रोइकोनॉमिक मूलतत्त्व और सूझबूझ भरी नीतियों के चलते विकास की गति में उछाल आ रहा है।
साफ है कि भारत की अर्थव्यवस्था न केवल तेजी से बढ़ रही है, बल्कि स्थिरता और संतुलन के साथ आगे बढ़ रही है, जो देश के आर्थिक भविष्य के लिए बेहद सकारात्मक संकेत हैं।
साभार- पीआईबी
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