बिहार में रेलवे विकास ने एक नया मुकाम हासिल किया है। केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने 23 जुलाई 2025 को लोकसभा में जानकारी दी कि वर्ष 2025-26 के लिए बिहार को 10,066 करोड़ रुपये का रेलवे बजट आवंटित किया गया है, जो वर्ष 2009-14 की तुलना में करीब 9 गुना अधिक है। यह न केवल बजट की दृष्टि से एक बड़ी उपलब्धि है, बल्कि राज्य में रेलवे इंफ्रास्ट्रक्चर के हर पहलू – संपर्क, सेवा, स्टेशन, ट्रेन और सुरक्षा – में क्रांतिकारी परिवर्तन का संकेत है।
2009-14 के दौरान जहां औसतन ₹1132 करोड़ प्रति वर्ष का व्यय हुआ, वहीं 2014-25 के दौरान यह आंकड़ा कई गुना बढ़ा। इसी अवधि में, बिहार में 318 किमी की तुलना में 1899 किमी नए रेलपथ कमीशन किए गए, यानी औसतन 2.5 गुना अधिक। इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि बिहार की रेलवे परियोजनाओं को अभूतपूर्व गति दी गई है।
राज्य में हाल ही में पूरी हुईं बड़ी परियोजनाओं में गंगा और कोसी नदियों पर बनाए गए तीन महत्वपूर्ण पुल शामिल हैं – मुंगेर ब्रिज (19 किमी, ₹2774 करोड़), कोसी पुल (22 किमी, ₹516 करोड़), और पटना ब्रिज (40 किमी, ₹3555 करोड़)। ये पुल बिहार को बेहतर संपर्कता देने के साथ-साथ सामाजिक और आर्थिक गतिविधियों को भी नया आयाम दे रहे हैं।
बिहार में वर्तमान में 52 प्रमुख रेलवे परियोजनाएं चल रही हैं। इनमें 31 नई लाइनें, 1 गेज परिवर्तन और 20 दोहरीकरण परियोजनाएं शामिल हैं। इनकी कुल लंबाई 4663 किमी है, जिनमें से 1014 किमी मार्ग चालू हो चुके हैं और ₹29,353 करोड़ से अधिक की राशि व्यय की जा चुकी है। ये परियोजनाएं राज्य के हर क्षेत्र को जोड़ने और माल/यात्री परिवहन को कुशल बनाने में अहम भूमिका निभा रही हैं।
इन परियोजनाओं में सीतामढ़ी-शिवहर, खगड़िया-कुशेश्वरस्थान, विक्रमशिला-कटारिया (गंगा पुल सहित), और सोननगर–पतरातु मल्टीट्रैकिंग जैसी रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण परियोजनाएं शामिल हैं। बिहार के भीतर और आसपास के राज्यों से कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए इन रेल मार्गों की योजना बनाई गई है।
बिहार वंदे भारत और अमृत भारत जैसी प्रीमियम सेवाओं का भी केंद्र बनता जा रहा है। देश में चल रही 144 वंदे भारत ट्रेनों में से 20 सेवाएं बिहार से संबंधित हैं। इनमें पटना-रांची, हावड़ा-पटना, भागलपुर-हावड़ा और गोमतीनगर जैसे मार्ग शामिल हैं। इसी तरह, 14 अमृत भारत एक्सप्रेस ट्रेनों में से 10 बिहार को सेवा दे रही हैं, जिनमें दरभंगा, सहरसा, राजेंद्र नगर जैसे स्टेशनों से चलने वाली ट्रेनें शामिल हैं।
इसके साथ ही, भारत सरकार ने हाई-स्पीड कनेक्टिविटी के तहत बिहार में नमो भारत रैपिड रेल सेवाओं की शुरुआत की है। वर्तमान में, 2 नमो भारत सेवाएं जयनगर-पटना मार्ग पर चल रही हैं, जो राजधानी पटना को सीमावर्ती क्षेत्रों से तेज़ कनेक्टिविटी देती हैं।
रेलवे मंत्रालय ने बिहार में 98 रेलवे स्टेशनों को "अमृत भारत स्टेशन योजना" के अंतर्गत चिन्हित किया है। इन स्टेशनों पर यात्री सुविधाओं का विकास, स्टेशन भवनों का नवीनीकरण, मल्टी-मॉडल ट्रांजिट, दिव्यांगजनों के लिए सुविधाएं, प्लेटफार्म पर छत और वाई-फाई जैसे कई कार्य प्रगति पर हैं। गया, मुजफ्फरपुर, सहरसा, लखीसराय, सलौना जैसे स्टेशनों पर फेज-I के तहत कई कार्य पूरे हो चुके हैं और यात्री अनुभव में महत्वपूर्ण सुधार हुआ है।
रेल संरक्षा के दृष्टिकोण से, मानवयुक्त रेलवे क्रॉसिंग को समाप्त करने हेतु बिहार में 2014 से 2025 तक कुल 558 आरओबी/आरयूबी पूरे किए गए हैं और ₹6,014 करोड़ की लागत से 218 और पुलों की मंजूरी दी गई है। इससे ट्रैफिक जाम, दुर्घटनाओं और प्रतीक्षा समय में कमी आई है।
बिहार में रेलवे की भविष्य की योजना को आगे बढ़ाने हेतु कई सर्वेक्षण भी किए गए हैं। इनमें दीन दयाल उपाध्याय-किऊल, छपरा-कटिहार, नवादा-पावापुरी, बिहटा-औरंगाबाद, फतुहा-बख्तियारपुर जैसी लाइनों की तीसरी और चौथी लाइन शामिल हैं। ये सर्वेक्षण नए विकास के द्वार खोलते हैं।
रेल परियोजनाएं राज्य की सीमाओं से आगे जाकर देश के अन्य भागों को भी प्रभावित करती हैं। इसलिए रेलवे परियोजनाएं राज्यवार नहीं, बल्कि क्षेत्रीय रेलवे ज़ोन के अनुसार प्लान की जाती हैं। बिहार की परियोजनाओं में ईसीआर, एनएफआर, ईआर और एनईआर जैसे ज़ोन की सक्रिय भूमिका रही है।
परियोजनाओं के निष्पादन में भूमि अधिग्रहण, पर्यावरणीय मंजूरी, कानून व्यवस्था, मौसम और भौगोलिक स्थितियों जैसे कई कारक होते हैं। फिर भी, रेलवे मंत्रालय ने समय पर प्रगति सुनिश्चित करने हेतु सभी एजेंसियों के साथ समन्वय में कार्य किया है।
बिहार के रेल बजट और परियोजनाओं में हुई यह ऐतिहासिक वृद्धि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के “गति शक्ति” और “इन्फ्रास्ट्रक्चर फर्स्ट” विजन को साकार करती है। इससे न केवल यात्रियों को सुविधा मिली है, बल्कि रोजगार, क्षेत्रीय विकास और औद्योगिक प्रगति को भी बल मिला है।
रेलवे के इस स्वर्णिम युग में बिहार अब न सिर्फ एक उपभोक्ता राज्य है, बल्कि एक सक्रिय भागीदार भी बन चुका है जो भारत के विकास इंजन को गति दे रहा है।
सोर्स पीआईबी
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