भारत की अंतरिक्ष यात्रा का सुनहरा अध्याय - 2025 में इसरो की प्रगति और वैश्विक महत्वाकांक्षाएं

भारत का अंतरिक्ष अभियान अब केवल एक तकनीकी सफर नहीं बल्कि देश की वैज्ञानिक जिज्ञासा, साहस और सामूहिक प्रगति का प्रतीक बन चुका है। 1963 में एक छोटे रॉकेट के प्रक्षेपण से लेकर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफल लैंडिंग तक, भारत ने अंतरिक्ष में मजबूत स्थिति बना ली है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में, भारत ने अंतरिक्ष क्षेत्र में कई ऐतिहासिक उपलब्धियां हासिल की हैं और खुद को वैश्विक अंतरिक्ष शक्ति के रूप में स्थापित किया है।


भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने 2025 में कई बड़े मिशनों की सफलता के साथ भारत की अंतरिक्ष महत्वाकांक्षाओं को नयी ऊंचाइयों पर पहुंचाया है।

30 जुलाई, 2025 को नासा-इसरो संयुक्त मिशन निसार (NISAR) का GSLV-F16 रॉकेट से प्रक्षेपण तय है, जो पृथ्वी के पारिस्थितिक तंत्र, हिमखंडों और प्राकृतिक आपदाओं की हर मौसम और दिन-रात निगरानी करेगा।

एक्सिओम-4 मिशन की सफलता के साथ भारत ने अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पर अपना पहला अंतरिक्ष यात्री ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला भेजा, जो 18 दिनों तक वहां रहा और वैज्ञानिक प्रयोग सफलतापूर्वक किए। प्रधानमंत्री मोदी ने उनकी पृथ्वी पर वापसी पर उनका स्वागत किया और इसे भारत की उन्नति का नया अध्याय बताया।

भारत का पहला स्वदेशी मानवयुक्त मिशन 'गगनयान' जल्द ही लॉन्च होने वाला है, जिसके तहत भारतीय अंतरिक्ष यात्री पृथ्वी की निचली कक्षा में भेजे जाएंगे। इसके बाद 2035 तक भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS) का निर्माण और 2040 तक चंद्रमा पर उतरने की योजना है।

भारत के चंद्रयान मिशन भी अंतरिक्ष इतिहास में उल्लेखनीय हैं—चंद्रयान-1 ने पहली बार चंद्रमा पर जल के अणुओं की पुष्टि की; चंद्रयान-3 ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक सॉफ्ट लैंडिंग कर भारत को इस क्षेत्र में पहला देश बनाया।

भारत का मंगलयान मिशन (Mars Orbiter Mission) भी सफल रहा, जिसने कम लागत में मंगल ग्रह की कक्षा में प्रवेश कर एशिया में प्रथम स्थान हासिल किया। नेविगेशन उपग्रह प्रणाली (NAVIC) ने देश की भू-स्थानिक स्थिति निर्धारण और आपदा प्रबंधन में सहायता की है।

इसरो ने अपनी अगली पीढ़ी के प्रक्षेपण यान (NGLV) का विकास शुरू कर दिया है, जो उच्च क्षमता वाले लॉन्च यानों में नई छलांग साबित होगा। साथ ही, भारत ने स्पैडेक्स मिशन के ज़रिए उपग्रह डॉकिंग तकनीक में महारत हासिल की है, जो भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन के लिए आधार बनेगा।

भारत की मलबा मुक्त अंतरिक्ष मिशन (DFSM) पहल से अंतरिक्ष मलबे की समस्या से निपटने और सुरक्षित, सतत् बाह्य अंतरिक्ष सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता उजागर होती है।

अंतरराष्ट्रीय सहयोग के तहत भारत NASA, यूरोपीय अन्तरिक्ष एजेंसी, जापान, पोलैंड, हंगरी जैसे देशों के साथ मिशन साझा करके विज्ञान एवं तकनीकी नवाचार को बढ़ावा दे रहा है। निजी क्षेत्र को भी पूरी तरह खोलते हुए इसरो की वाणिज्यिक शाखाएं एनएसआईएल और एंट्रिक्स कॉर्पोरेशन ने वैश्विक बाजार में भारत के अंतरिक्ष उत्पादों को स्थापित किया है।

भारत ने अंतरिक्ष बजट में भारी वृद्धि की है, जो लगभग तिगुना होकर 2025-26 में ₹13,416 करोड़ हो गया है, जो भी सरकार की अंतरिक्ष क्षेत्र के प्रति गहरी प्रतिबद्धता दर्शाता है।

आने वाले महीनों में PSPLV-C61/EOS-09, TV-D2, GSLV-F16/NISAR, LVM3-M5/BlueBird Block-2 समेत कई महत्वपूर्ण मिशन इसरो द्वारा लॉन्च किए जाएंगे। इसके अतिरिक्त, शुक्र मिशन, चंद्रयान-4, चंद्रयान-5 और भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन परियोजना भारत के दीर्घकाल दृष्टिकोण का हिस्सा हैं।

भारत की अंतरिक्ष यात्रा अब रॉकेट उड़ाने से कहीं आगे बढ़ चुकी है। यह वैज्ञानिक अनुशासन, वैश्विक सहयोग, निजी क्षेत्र की भागीदारी और रणनीतिक नेतृत्व का परिपूर्ण चित्र है। जैसे-जैसे भारत अपनी मानवयुक्त उड़ान की तैयारी कर रहा है और चंद्रमा व मंगल ग्रह की ओर बढ़ रहा है, विश्व इसका नेतृत्व करने वाले देशों में शामिल होने की ओर देख रहा है।

सोर्स पीआईबी

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