महिला सशक्तिकरण में जुटी मोदी सरकार: स्थानीय शासन से लेकर संसद तक महिलाओं की भागीदारी बढ़ाई

मोदी सरकार लगातार महिलाओं को मजबूत करने के लिए कई बड़े कदम उठा रही है—खासकर स्थानीय शासन और राजनीति में उनकी भागीदारी के लिए। सरकार का फोकस सिर्फ कागजी योजनाओं तक नहीं है, बल्कि ग्राउंड पर महिलाओं को फैसले की कुर्सी तक पहुँचाने पर है। महिला एवं बाल विकास राज्यमंत्री

श्रीमती सावित्री ठाकुर ने संसद के मानसून सत्र के दौरान राज्य सभा में बताया कि अब देश में 1957 में 3% के मुकाबले 2024 में 10% महिलाएँ आम चुनाव लड़ रही हैं। पहले लोकसभा में सिर्फ 22 महिला सांसद थीं, अब 18वीं लोकसभा में उनकी संख्या 75 पहुँच गई है, यानी लगभग 14%।

राज्यसभा में भी पहले सिर्फ 15 महिलाएँ थीं, अब 42 हैं लगभग 17%। बड़ी बात यह है कि पंचायतों में करीब 14.5 लाख महिलाएँ निर्वाचित प्रतिनिधि हैं, जो कुल का 46% है—दुनिया में किसी भी लोकतंत्र में ऐसा अनुपात नहीं है। देश के 21 राज्यों में पंचायतों के लिए महिलाओं को 50% तक आरक्षण मिल गया है, जबकि संविधान में न्यूनतम 33% तय था।

2023 में ऐतिहासिक “नारी शक्ति वंदन अधिनियम” पारित हुआ, जिससे लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं में भी एक-तिहाई सीट महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। यानी अब संसद और विधानसभाओं में लगातार हर पाँच साल में सीटें बारी-बारी से महिलाओं के लिए आरक्षित रहेंगी। इससे महिलाओं की भागीदारी केवल संख्या तक नहीं रहेगी, बल्कि वे नीति-निर्माण में खुलकर भूमिका निभाएँगी।

ग्रामीण स्तर पर “सशक्त पंचायत-नेत्री अभियान” शुरू हुआ है, जिसमें पंचायतों की महिला प्रतिनिधियों को ट्रेनिंग दी जा रही है, ताकि वे योजना बनाने, बजट समझने और गाँव के फैसलों में आगे रहें। उनकी सुरक्षा, सशक्तिकरण और निर्णय क्षमता बढ़ाने के लिए खास कानूनी प्राइमर और ट्रेनिंग मॉड्यूल भी बनाए गए हैं।

सरकार ने हर जिले में आदर्श महिला-अनुकूल ग्राम पंचायत मॉडल की पहल भी शुरू की है, ताकि महिलाओं और बेटियों के लिए सुरक्षित, समावेशी और विकास-उन्मुख माहौल तैयार हो सके। साथ ही, आज देशभर में करीब 10 करोड़ महिलाएँ 90 लाख से ज्यादा स्वयं सहायता समूह (SHG) से जुड़कर न केवल आर्थिक बदलाव ला रही हैं, बल्कि गाँव-गाँव में नेतृत्व की मिसाल भी पेश कर रही हैं।

पृष्ठभूमि में देखें तो 2014 के बाद केंद्र सरकार ने महिलाओं के लिए प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (गैस कनेक्शन), जन धन योजना (बैंक खाते), मुद्रा लोन, मातृत्व लाभ, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, स्वच्छ भारत मिशन, आयुष्मान भारत जैसी स्कीमों के जरिए उनके जीवन में बड़े बदलाव लाने का प्रयास किया है। नई नीतियाँ महिला नेतृत्व, सुरक्षा और आर्थिक सशक्तिकरण तीनों को साथ लेकर चल रही हैं।

कुल मिलाकर, भले अभी मंज़िल दूर हो, पर मोदी सरकार ने महिला सशक्तिकरण को सरकारी नीतियों के केंद्र में रखकर उसे एक जन आंदोलन बना दिया है—अब गाँव की पंचायत से संसद के गलियारों तक महिलाओं की आवाज़ पहले से कहीं ज्यादा मजबूती से गूँज रही है।
सोर्स पीआईबी

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